एक प्यासे कोव्वे को एक जगह पानी का मटका पड़ा नज़र आया. वह बहुत खुश हुआ , लेकिन यह देख कर उससे निराशा हुई की पानी बहुत नीचे- केवल मटके के तल में थोडा सा है. उसके सामने सवाल यह था के पानी को कैसे ऊपर लाये और अपनी चोंच तर करे.
इत्तफाक से उसने लुकमान की कहानिया पढ़ रखी थी. पास ही बहुत से कंकड़ पड़े थे. उसने उठा के एक एक कंकड़ उसमे डालना शुरू किया. कंकड़ डालते डालते सुबह से शाम हो गयी. बेचारा प्यासा तो था ही, निढाल हो गया. मटके के अन्दर नज़र डाली तो क्या देखता है की कंकड़ ही कंकड़ है. सारा पानी कंकडों ने पी लिया है. अनायास ही उसके जुबां से निकला - " धत् तेरे लुकमान की " फिर बेसुध होके वो ज़मीन पर गिर गया और प्यास के मारे मर गया.
अगर वह कोव्वा कही से एक नलकी ले आता, तो मटके के मुह में बैठा बैठा पानी को चूस लेता. अपने दिल की मुराद पाता. हरगिज़ जान से न जाता.
इत्तफाक से उसने लुकमान की कहानिया पढ़ रखी थी. पास ही बहुत से कंकड़ पड़े थे. उसने उठा के एक एक कंकड़ उसमे डालना शुरू किया. कंकड़ डालते डालते सुबह से शाम हो गयी. बेचारा प्यासा तो था ही, निढाल हो गया. मटके के अन्दर नज़र डाली तो क्या देखता है की कंकड़ ही कंकड़ है. सारा पानी कंकडों ने पी लिया है. अनायास ही उसके जुबां से निकला - " धत् तेरे लुकमान की " फिर बेसुध होके वो ज़मीन पर गिर गया और प्यास के मारे मर गया.
अगर वह कोव्वा कही से एक नलकी ले आता, तो मटके के मुह में बैठा बैठा पानी को चूस लेता. अपने दिल की मुराद पाता. हरगिज़ जान से न जाता.
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