यादो की डालियों पर अनगिनत बीते लम्हों की कालिया महकने लगी है .........

...“ एक दिन सवेरे सवेरे
सुरमई सी अंधेर की चादर ताके
एक पर्वत के तकिये से
सूरज ने
सर जो उठाया

तो देखा ….

दिल की वादी में चाहत का मौसम आया
और यादो की डालियों पर
अनगिनत बीते लम्हों की कालिया
महकने लगी है

अनकही
अनसुनी आरजू

आधी सोयी हुई

आधी जागी हुई

आँखे मलते हुए
देखती है

लहर दर लहर
मौज दर मौज
बहती हुई ज़िन्दगी
जैसे हर एक पल नयी
और फिर भी वही
हाँ वही
ज़िन्दगी

जिसके दामन में कोई मोहब्बत भी
कोई हसरत भी है

पास आना भी है

दूर जाना भी है

और ये अहसास है
वक़्त झरने सा बहता हुआ
जा रहा है ये कहता हुआ

दिल की वादी में चाहत का मौसम आया
और यादो की डालियों पर
अनगिनत बीते लम्हों की कालिया
महकने लगी है ”
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